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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Thursday, July 5, 2012. दाल में सब काला है …. यही तो गड़बड़झाला है. दाल में सब काला है. ओहदे पर तो होगा ही. वो जब उसका साला है. कैसे कहें जो कहना है. मुंह पर लगा ताला है. शायद किस्मत साथ दे. सिक्का फिर उछाला है. शब्दों के बगावती तेवर. परेशानी में वर्णमाला है. किरदार समझने लगे हैं. दुनिया एक रंगशाला है. जख्मों ने मेरे जिस्म को. समझ लिया धर्मशाला है. प्रस्तुतकर्ता. Friday, June 29, 2012. हमरे मन में त बा बहुते सवाल. घुटना क दरद अब कईसन हौ. चित्र : स...मेर...

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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Thursday, July 5, 2012. दाल में सब काला है …. यही तो गड़बड़झाला है. दाल में सब काला है. ओहदे पर तो होगा ही. वो जब उसका साला है. कैसे कहें जो कहना है. मुंह पर लगा ताला है. शायद किस्मत साथ दे. सिक्का फिर उछाला है. शब्दों के बगावती तेवर. परेशानी में वर्णमाला है. किरदार समझने लगे हैं. दुनिया एक रंगशाला है. जख्मों ने मेरे जिस्म को. समझ लिया धर्मशाला है. प्रस्तुतकर्ता. Friday, June 29, 2012. हमरे मन में त बा बहुते सवाल. घुटना क दरद अब कईसन हौ. चित्र : स...मेर...
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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Thursday, July 5, 2012. दाल में सब काला है …. यही तो गड़बड़झाला है. दाल में सब काला है. ओहदे पर तो होगा ही. वो जब उसका साला है. कैसे कहें जो कहना है. मुंह पर लगा ताला है. शायद किस्मत साथ दे. सिक्का फिर उछाला है. शब्दों के बगावती तेवर. परेशानी में वर्णमाला है. किरदार समझने लगे हैं. दुनिया एक रंगशाला है. जख्मों ने मेरे जिस्म को. समझ लिया धर्मशाला है. प्रस्तुतकर्ता. Friday, June 29, 2012. हमरे मन में त बा बहुते सवाल. घुटना क दरद अब कईसन हौ. चित्र : स...मेर...

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जज़्बात: छत्तीस का आकड़ा है ….

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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Wednesday, May 23, 2012. छत्तीस का आकड़ा है …. छत्तीस का आकड़ा है. क़दमों में पर पड़ा है. आंसुओं को छुपा लेगा. जी का बहुत कड़ा है. उंगलियां उठें तो कैसे? कद उनका बहुत बड़ा है. लहुलुहान तो होगा ही. पत्थरों से वह लड़ा है. कब का मर चुका है. वह जो सामने खड़ा है. खाद बना पाया खुद को. महीनों तक जब सड़ा है. कल सर उठाएगा बीज. आज धरती में जो गड़ा है. प्रस्तुतकर्ता. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण). May 23, 2012 at 9:07 PM. May 23, 2012 at 9:47 PM. May 23, 2012 at 10:01 PM.

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जज़्बात: चिठिया लिख के पठावा हो अम्मा .. (भोजपुरी)

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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Friday, June 29, 2012. चिठिया लिख के पठावा हो अम्मा . (भोजपुरी). चिठिया लिख के पठावा हो अम्मा. गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा. हमरे मन में त बा बहुते सवाल. पहिले त तू बतावा आपन हाल. घुटना क दरद अब कईसन हौ. अबकी तोहरा बदे ले आईब शाल. मन क बतिया त सुनावा हो अम्मा. गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा. टुबेलवा क पानी आयल की नाही. धनवा क बेहन रोपायल की नाही. झुराय गयल होई अबकी त पोखरी. परोरा* क खेतवा निरायल की नाही. मरचा से नज़र उतरायल त होई. लेबल: गीत. इस गीत न&#...

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जज़्बात: जिस्म पर कीलें गाड़ देता है ….

http://ghazal-geet.blogspot.com/2012/06/blog-post_22.html

संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Friday, June 22, 2012. जिस्म पर कीलें गाड़ देता है …. मेरा रहबर हर कदम पर मुझको पहाड़ देता है. सूरज के कहर से बचाने के लिए ताड़ देता है. आशियाना बनाने में वह इस कदर मशगूल है. न जाने कितनों का वह छप्पर उजाड़ देता है. हालात बयाँ करने के लिए जब भी खत लिखा. पता देखकर बिना पढ़े बेरहमी से फाड़ देता है. नयन नीर से सिंचित ज़ज्बाती इन पौधे को. देखा उसने जब भी जड़ से ही उखाड़ देता है. दीवार कीमती है कहीं पलस्तर न उखड़ जाए. प्रस्तुतकर्ता. June 22, 2012 at 10:27 AM. दीव&#2...

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जज़्बात: आज वह मर गया …

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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Sunday, April 15, 2012. आज वह मर गया …. आज वह मर गया. ऐसा नहीं कि. पहली बार मरा है. अपने जन्म से. मृत्यु तक. होता रहा तार-तार;. और मरता रहा. हर दिन कई-कई बार,. उसके लिए. रचे जाते रहे चक्रव्यूह,. यह जानते हुए भी कि. वह दक्ष नहीं है. चक्रव्यूह भेदनकला में,. उसे ही कर्तव्यबोध कराया गया. और उतारा गया. बारम्बार समर में,. हर बार उसके मृत्यु पर. विधिवत निर्वहन हुआ. शोक की परम्परा का भी,. और फिर आंसुओं का सैलाब देख. वह पुन: पुनश्च,. पर आज जबकि. हर रोज नए चक&#...

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जज़्बात: प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न ….

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संस्कारित-सभ्यों के बीच आदमखोर कबीले क्यूं हैं? Sunday, March 18, 2012. प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न …. रंग बदलती दुनिया में, खुद को बदल न पाये हम. उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम. भैस बराबर अक्षर. फिर भी है वह ज्ञाता. रिश्तों के देहरी पर. अनुबंधों का तांता. भ्रमित करने के चक्कर में, खुद ही को भरमाये हम. उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम. नौ-नब्बे के चक्कर में. जम कर हुई उगाही. राह बताने को आतुर. भटके हुए ये राही. 8216;पर’ बिना परिंदा ये. गगन को चूम रहा है. आखेटक मन देखो. इसकी गु...रंग...

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स्व प्न रं जि ता: April 2015

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शनिवार, 18 अप्रैल 2015. तुम सुंदर हो ।. तुम सुंदर, तुमसे. जग सुंदर. इस जग की सब बातें सुंदर. नदिया, पर्वत, बादल सुंदर. पशु, पक्षी और जंगल सुंदर. सागर, बालू, सीपी सुंदर. लहरातीं फसलें सुंदर. इस धरती की गोदी सुंदर. और आसमान की छत सुंदर. चंदा, तारे, बादल सुंदर. सूरज की किरणें सुंदर. बारिश की बूंदे सुंदर. पवन के झकोरे सुंदर. बिजली की चमकारें सुंदर. बादल की गड गड सुंदर. शांत रूप सुंदर. रौद्र रूप भी तो सुंदर. मै भी सुंदर, वह भी सुंदरं. तेरा प्रकाश सबके अंदर. हरलो मानव मन की कालिख. Links to this post.

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स्व प्न रं जि ता: March 2015

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शुक्रवार, 27 मार्च 2015. जनम हुवा राम का. पवित्र अति मास चैत्र , शुध्द नवमी की तिथी,. समय मध्यान्ह का, ना शीत ऊष्ण ना अति,. शीतल, सुगंधी पवन, मुक्त चहुं दिशि विचरता. जनम हुवा राम का, जनम हुवा राम का।. अयोध्या है हुई धन्य, कौशल्या तृप्त नयन,. दशरथ अति आनंदित,पुलकित रोमांचित तन. नया नया शिशु रुदन, रनिवास में गूंजता. जनम हुवा राम का. सुहागिने चलीं लेकर जल कलश, थाल स्वर्ण. वाद्य मंगल बजते, गूंजते शगुन गान. आनंदित अवधपुरी, सरयू का जल महका. जनम हुवा राम का. जनम हुवा राम का. Links to this post. पाल ल&#237...

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काश मैं भी बाबा होता | Khyalat

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16 ट प पण य. जब बनन क ल य बह त क छ ह त ब ब क य? चल य आप क बत द त ह क म ब ब ह क य बनन च हत ह? आप क पत भ नह चल ग क कब आपक प स बड़ -बड़ आश रम आ ज य ग , आपक आव गमन क ल य नय -नय व हन उपलब ध ह ज य ग , अथ ह प स आपक न म स ब क म जम ह ज य ग यह तक क आपक कह आन -ज न क ल य भ ढ र स र प स म ल ग. त आप ह बत ईय क अगर म ब ब बनन च हत ह त इसम गलत क य ह? भ ई म झ त इतन फ यद और क स व यवस य य न कर म नज़र नह आत अगर आपक आत ह त म झ जर र बत न तब तक म भगव न क मन त ह क व म झ ब ब बन द और क स अच छ स ब ब क ख जकर उनस क छ ग र स ख ल त ह. प रय स...

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मेरे सपनों की दुनिया: August 2011

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मेरे सपनों की दुनिया. मेरी कलम से सजी. Thursday, August 11, 2011. क्षणिकाएं. पतझड़ का मौसम. महकते जीवन में,. बरसों से तेरी चाहत ने. तेरी यादों ने,. खिलाये कई फूल गुलमोहर के. आज तू नहीं,. तेरी चाह नहीं,. तेरी याद नहीं,. तेरे ख़्वाब नहीं. ज़िंदगी भी बस यूँ ही. धीरे-धीरे कट रही है ऐसे,. जिसे देख कर. कोई भी कह दे कि. बिखर गए हैं. फूल गुलमोहर के. और आ गया है. मेरे जीवन में. पतझड़ का मौसम. अधूरी तस्वीर. कहीं से. एक और रंग मिल जाये,. तो बरसों से. अधूरी रही ये तस्वीर. बदले हुए रंग से. और फिर,. उस मौन पड़ी. वो ...

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स्व प्न रं जि ता: December 2013

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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013. दर्द इतना बढा. दर्द इतना बढा सम्हाला न गया,. लाख चाहा मगर छुपाया न गया।. जाम आंखों के जो छलकने को हुए,. बहते अश्कों को फिर रुकाया न गया।. जख्म इतने दिये जमाने ने,. हम से मरहम भी लगाया न गया।. कोशिशें लाख कीं मगर फिर भी,. उनको आना न था, आया न गया।. ऊपरी तौर पे सब ठीक ही लगता लेकिन,. हाल अंदर का कुछ बताया न गया।. हम चल देंगे यकायक कि खाट तोडेंगे,. किसने जाना, किसी से जाना न गया।. जिंदगी का आज ये पल सच्चा है. इससे आगे. को कुछ विचारा न गया।. Links to this post. नई पोस्ट.

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स्व प्न रं जि ता: December 2014

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बुधवार, 31 दिसंबर 2014. शुभ नववर्ष. खुल रही है एक नई किताब जिसका हर सफा है कोरा,. लिखना है हमें ही इसमें हर दिन का हिसाब हमारा।. कितनी की मक्कारियाँ कितने बोले झूठ. कितनों को लगाया चूना, किस पेड को बनाया ठूँठ।. कितनी फैलायी गंदगी नजरें सबकी बचाके,. कितने तोडे वादे, झूटे बहाने बनाके. कितना किया अपमान सज्जनों का. कितना निभाया साथ दुर्जनों का. क्या यही सब लिखना है इसमें,. और अंत में रोना पडेगा. या कि फिर हम चुनेंगे इक नई राह. जिस पर चल कर सुख मिलेगा।. और हमारे साथ सब आयें।. शुभ नव वर्ष।. Links to this post.

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स्व प्न रं जि ता: July 2014

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शनिवार, 26 जुलाई 2014. धुंधली सी उम्मीद. राह खत्म है फिर भी चल रहा हूँ मै. कागज़ नही पर शब्द ही छलका रहा हूँ मै।. आँखों के आँसू सूख गये बडे दिन हुए,. दिल में कहीं नमी की, खोज में रहा हूँ मैं. कैसे कोई किसी से इतनी बेरुखी करे,. सवाल का जवाब नही पा रहा हूँ मै।. मैने तो अपनी ओर से कोशिश भी की बहुत,. उस बंद दर को कहाँ खुलवा सका हूँ मै।. एक धुंधली सी उम्मीद कि शायद खुलेगी राह,. इसी आस को दिल में बसाये जा रहा हूँ मै. चित्र गूगल से साभार।. Links to this post. Labels: कविता. नई पोस्ट. चर्चामंच.

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मेरे सपनों की दुनिया: July 2011

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मेरे सपनों की दुनिया. मेरी कलम से सजी. Sunday, July 24, 2011. तुम्हारी अभिलाषा. तुम्हारे सिवा बाकि नहीं रही. मेरी कोई और अभिलाषा. मेरे सपनों की कल्पना भी जैसे. दूर तक भटकने के बाद,. तुम पर ही आकर ठहर सी गयी है. शायद तुम्हारा स्पर्श ही. मेरे सपनों को यथार्थ बनाता है. मेरे जीवन-संगीत का सुर भी. तुम्हें सोच कर, तुम्हें चाह कर. छेड़ देता है एक मधुर तान. शायद तुम्हारा ख्याल ही मेरे. सुरों को संगीत देता है. और मेरे जीवन को झंकृत करता है. सावन में बरसता रिमझिम पानी,. जैसे पल भर में. मिताली. अनामिक&#2...ओ र&#2375...

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मेरे सपनों की दुनिया: May 2013

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मेरे सपनों की दुनिया. मेरी कलम से सजी. Wednesday, May 8, 2013. यादों की पोटली . चुन-चुन कर मैंने. समेट लिया. तुम्हारी यादों का कारवाँ. और बना ली एक पोटली . दिल की ना सुन कर. लगाया जोर दिमाग पर. कि कहीं कोई याद. बाकी तो ना रह गयी . दिमाग ने भी चुपचाप. लगा दी मुहर. और मार दिया ताना. मुझ पर हँसते हुए. कि 'सब समेटने के बाद. कुछ भी बिखरा नहीं रहता-. ओ पागल लड़की' . अब बस मैं थी, तन्हाई थी,. और थी मेरी नज़रों के सामने. तुम्हारी यादों की पोटली,. तुम्हारे दिए हुए. कभी मैं देखती. कभी महसूस करती. ऐसा लगा. तुम&...

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मेरे सपनों की दुनिया: May 2011

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मेरे सपनों की दुनिया. मेरी कलम से सजी. Sunday, May 8, 2011. माँ,. एक ऐसा शब्द. जो समेटे है अपने आप में एक दुनिया,. जो बाँट दे निःस्वार्थ भाव से सारी खुशियाँ. माँ,. एक ऐसा शब्द. जो है सहनशीलता की निशानी,. झेलती आई है पीड़ा सदियों पुरानी. हर इंसान का अस्तित्व माँ ने बनाया है,. फिर क्यों इंसान. अपनी माँ को ही छलता आया है? लोगों की इस भीड़ में,. दुनिया की इस लडाई में,. अपनी माँ को ही भुलाता आया है. और अपनी हर गलती के लिए,. माँ को ही रुलाता आया है. फिर भी. पर हमेशा खुश रहती है. पर क्यों,. Tuesday, May 3, 2011.

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غزل عشق

خداوند بی نهایت است و لامکان و بی زمان. اما به قدر فهم تو کوچک می شود. به قدر نیاز تو پایین میاید. به قدر آرزوی توگسترده می شود. و به قدرایمان تو کار گشا میشود. نوشته شده در دوشنبه ۱۹ اردیبهشت۱۳۹۰ساعت 20:40 توسط ghazal fimi. خدایا حكمت قدمهایی را كه برایم بر میداری آشكار كن تا درهایی راكه به سویم میگشایی ندانسته نبندم و درهایی كه به رویم میبندی به اصرار نگشایم. نوشته شده در پنجشنبه ۲۱ بهمن۱۳۸۹ساعت 23:27 توسط ghazal fimi. قانون جذب در جهت رسیدن به موفقیت. معین کنید چه چیزی می خواهید. اگر تازه می خواهید از...

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به پای بوسی چشمت نشد بیایم بانو. که بوسه میزنم از دور بر ضریح لبانت. نوشته شده در شنبه شانزدهم مرداد ۱۳۸۹ 17:21 توسط حسین زحمتکش. هی سکه تردید به قلک بنداز. هی در دل قرص بعضیا شک بنداز. دل درد و گلو درد و کمر دردت را. هی گردن نانوایی سنگک بنداز. با این همه خیر و شر که در عالم هست. تو خیر ندیده هی به دل شک بنداز. گر دست در آن زلف دوتا نتوان زد". تو دست به گردن فلامک بنداز. وقتی که دو تا تاس تو شش نیست نرنج. جای عجله تاستو تک تک بنداز! وقتی که کسی مراد وفق تو نبود. بر دامن آبرو ی او لک بنداز. رباعی 3 و 4.

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بسم اللہ الرحمن الرحیم. چهارشنبه پنجم بهمن ۱۳۹۰ساعت 0:29 توسط. دیشب داشتم به غزل دیکته می گفتم که تو یه جمله روغن زیتون داشت. من هی تکرا می کردم روغن زیتون .روغن زیتووون. و غزل هم دیدم با خودش تکرار می کنه روغن زیتان! گفتم غزل زیتون نه زیتان! غزل: مامان اگه زیتون بنویسم خانوم دعوام می کنه آخه دیروز یکی از همکلاسی هام تو دیکته ش به جای خانه نوشته بود خونه! و خانوم کلی دعواش کرد. چهارشنبه نهم اردیبهشت ۱۳۹۴ساعت 18:32 توسط. دوشنبه هفتم اردیبهشت ۱۳۹۴ساعت 22:55 توسط. سه شنبه هجدهم فروردین ۱۳۹۴ساعت 23:0 توسط.

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شب گریه های من

شب گریه های من. خدا دوستم دارد، اکنون همۀ موهبتها و عطایای گرانقدر اورا می پذیرم. کامیابی و شادمانه ام مشیت خداست. این کامرانی به سیمای آرمانهای شکوهمند و ثمرات نیکو هم اکنون پدیدار می شود. از همین لحظه هدایا و عطایای خدارا در درون و پیرامونم بر می انگیزانم. و از هرجهت و هر دست، برکت کامرانی و شادمانی و کامیابی راستین به سوی من می آید. باز بایست و بدان که من خداهستم . بازبایست و بدان من خداوند ، در این وضعیت سرگرم کارم . خداوند شبان من است . محتاج به هیچ چیز نخواهم بود . کفایت ما از خداست . رزماری، برگ ب...

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طعم چشم هات

برای لحظات بارانی ام! اذان عشق به افق تو. چهارشنبه ای که شیرین نبود. امروز همدیگه رو دیدیم. بعد از ۱۰ رووووووووووووز. از هم گلایه کردیم.گفتی این مدت درس نخوندی.کمی زدیم توی سر و کله ی همدیگه! خیلی دوستت دارم وچقدر برام سخته دارم همش از دستت میدم. شب شهادت حضرت زهراست. نمیدونم آخرش چی میشه! پس این آخر کی می رسه؟ میخوام نماز استغاثه ی حضرت زهرا بخونم.ان شالله! چقدر می شود قهوه نوشید وقتی پهنه ی آن خدادای های قهوه ای تا تمام وجودم می رسد و در بر میگیرد وجب به وجب بلندی های تنم را. و الحمد الله رب العالمین!

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دختری از دنیای پاییز

دختری از دنیای پاییز. سلام غزل هستم به وبلاگ من خوش امدید این وبلاگ برام یه دنیاست که می تونم باهاش غم هام و شادی هام رو با خیلی ها قسمت کنم. چرا تن به این رنج میدهد عشق(آشتی عزیز). خاطرات یک ماهی(تارای عزیز). ابانه دختر ابان (آبانه ی عزیز ). عییییییدتون مبااارک دم شما سه چارک. چه خاکی گرفته اینجا. 95 یکم با خودت فکر کن ادم شوهمین اول سالی. فردا کنکوره حالا لباس چی بپوشم. تاریخ : پنجشنبه 24 تیر 1395 00:24 نویسنده : دختری از دنیای پاییز. عییییییدتون مبااارک دم شما سه چارک. سلاملکم حال و احوال. کمتر صدایت ...