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बिहार प्रगतिशील लेखक संघ: February 2015
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गुरुवार. मुक्तिबोध के बाद गुम हुई ऊर्जा की तलाश है विमल कुमार की कविता…. मुक्तिबोध के बाद की हिन्दी कविता में जो ओज. जो ऊर्जा. जो संभावना दिखाई देती है. बिहार प्रगतिशील लेखक संघ. द्वारा आयोजित दिल्ली से पधारे कवि विमल कुमार की प्रतिरोधी कविताओं के. पाठ के समय दिया। यह काव्य-पाठ कवि रैदास. खगेन्द्र ठाकुर ने की तथा संचालन कवि शहंशाह आलम ने किया।. इस अवसर पर कवि विमल कुमार ने अपनी बीसियों कविता का पाठ किया।. बूढ़ी स्त्री के लिए अपील. पानी का दुखड़ा. मुक्ति का इंतजार. डिजिटल इंडिया. गणेश जी बा...काव...
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दोआबा: दोआबा, अंक - 16
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दोआबा, अंक - 16. अपनी मौत से. हम सब को राजेन्द्र यादव ने. एक गहरे सन्नाटे में डाल दिया. इस सन्नाटे और कसक. से उबरने में वक्त लगेगा ही. अर्से तक यह एहसास भी. बना रहेगा कि. सिर्फ़ राजेन्द्र यादव में ही. राजेन्द्र यादव बनने की ताकत थी. 8217;दोआबा’. का यह अंक. उनकी इसी ताकत को समर्पित है. अंक में-. अपनी बात. आत्मगत के अंतर्गत महताब अली - गाड़ीवान का बेटा. काव्य-नाटिका में अनुज लुगुन - रक्त-बीज. अनुपम मिश्र : दुनिया का खेला. निरंजन देव शर्मा : सफ़रनामा. राजी सेठ. किरण अग्रवाल. इला कुमार. भरत भूषण आर्य. अभि...
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दोआबा: November 2009
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दोआबा' समय से संगत, अंक- 6. कंवल भारती. 8216;हिंदी नवजागरण काल की पत्रकारिता और दलित प्रश्न’. च लिया है मैंने. मैं अहसास को अहसास लिखूंगी अहसास की तरह. हंसी को हंसी. आंसू को आंसू. बचपन को बचपन. यौवन को यौवन. मौसम को मौसम. रंग को रंग. लहू को लहू. इंसान को इंसान. मैं हिंदू और मुसलमान, ब्राह्मण और चमार नहीं लिखूंगी. रण अग्रवाल. 8216;मैं झूठ नहीं लिखूँगी’. कविता से. इस अंक के रचनाकार-. संपादकः जाबिर हुसेन. सम्पर्कः 09431602575/09868181042. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. मनमोहन सरल, ज्ञा...जाब...
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दोआबा: November 2012
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दोआबा : अंक - 13. इस अंक में :. रघुवीर सहाय : भाषा की पूजा. कथा- डायरी : जाबिर हुसेन. दरीचा :. चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी : युग बदला. पीयुष नारायण : एक कैंसर सर्वाइवर की डायरी. उपन्यास अंश :. रामधारी सिंह दिवाकर : केंकड़े के बच्चे. उषाकिरण खान :बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे. मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी : उड़ने दो ज़रा. निलय उपाध्याय : पहाड़. कहानी :. तबस्सुम फ़ातिमा : बेनिशां. शाइस्ता फ़ाखरी : कुंवर फ़तेह अली. मंगलमूर्ति : बूढ़ा पेड़. कविता :. पंकज सिंह. सुधीर सक्सेना. प्रियदर्शन. कुमार विक्रम. पटना - 800 020. अभ...
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दोआबा: दोआबा, अंक- 15
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दोआबा, अंक- 15. इस अंक में. शंभु गुप्त : शब्दों के पीलेपन का अतिक्रमण. रामधारी सिंह दिवाकर : कथा-डायरी का अगला पड़ाव. प्रेम कुमार : मर्मस्पर्शी, जीवंत सुरुचिसंपन्न. अवध बिहारी पाठक : ज़ख़्मों का हलफ़िया बयान. श्यासुंदर घोष : जाबिर हुसेन का कथा-शिल्प. पल्लव : जिंदा होने का सबूत देती कथाएं. मनोज मोहन : कल्पना और यथार्थ का मिटता फ़र्क. कल्पतरु एक्सप्रेस : कथा के शिल्प में भूमिगत डायरी. अमरनाथ : बेचैन करने वाली डायरी. मनमोहन सरल : जमी हुई झील. मीरा कांत : लंबी औरत. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. आदिवासी ...अभिशप...
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दोआबा: December 2008
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दोआबा- अंक -5, ख़ानाबदोश विशेष-. ख़ानाबदोश. संपादकीय. अंक में प्रकाशित. शहंशाह आलम. ख़ानाबदोश लड़कियां. शीर्षक कविता-. सारा शाहर प्रतीक्षारत था. कि ख़ानाबदोश लड़कियां लौटेंगी और. नए तमाशे दिखाएंगी. नये मंजर रचेंगी. शहर मे दिन अच्छे थे. धूप भी रोज़ निकल रही थी. आंखों में खूबसूरत ख़्वाब भी. झलक रहे थे. स्कूल जाते नौउम्र लड़कों की. कस्तुरी-सी महकने वाली. ख़ानाबदोश लड़कियां नहीं लौटीं. इस बसंत में इस शहर. जिसका कोई देश न हो. वे क्यों लौट कर आएंगी. फ़िर-फ़िर आपके देश. धरती को भी मत बांधो. अंक से. पटना- 800 020, फ़...
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दोआबा: December 2010
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जी, सारा, सारा जोन्स। मैं गोआ से आती हूं. अपनी बात. फिर इन चकत्तों से आनेवाली ताज़ा ख़ून की बू मेरी नाक पर क्यों बिछ जाती है।. डा लालवानी! यह मेरा इस पांडुलिपि का दूसरा पाठ है। आंसुओं से भीगी, ताज़ा ख़ून में डूबी पांडुलिपि का दूसरा पाठ! ताज़ा खून के चकत्ते-जैसे! बंजर ज़मीन पर उगी रेल की पटरियां और उन पर फैले ताज़ा खून के चकत्ते! लेकिन ये फिज़ा अभी मुकम्मल कहां हुई! अभी कहां! जहाज़ की रफ्तार एकदम से थम गई है। कोई ख़ूबसूरत आवाज&#...मैंने देखा, उसके हाथों...शुक्रिया! जाबिर हुसेन. मैदान म...मै&...
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दोआबा: August 2013
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दोआबा, अंक- 15. इस अंक में. शंभु गुप्त : शब्दों के पीलेपन का अतिक्रमण. रामधारी सिंह दिवाकर : कथा-डायरी का अगला पड़ाव. प्रेम कुमार : मर्मस्पर्शी, जीवंत सुरुचिसंपन्न. अवध बिहारी पाठक : ज़ख़्मों का हलफ़िया बयान. श्यासुंदर घोष : जाबिर हुसेन का कथा-शिल्प. पल्लव : जिंदा होने का सबूत देती कथाएं. मनोज मोहन : कल्पना और यथार्थ का मिटता फ़र्क. कल्पतरु एक्सप्रेस : कथा के शिल्प में भूमिगत डायरी. अमरनाथ : बेचैन करने वाली डायरी. मनमोहन सरल : जमी हुई झील. मीरा कांत : लंबी औरत. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. आदिवासी ...अभिशप...
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सृजन-यात्रा: July 2013
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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. सोमवार, 15 जुलाई 2013. 8216;एक और कस्बा’ आपसे साझा कर रहा हूँ।. सुभाष नीरव. एक और कस्बा. सुभाष नीरव. देहतोड़ मेहनत के बाद. रात की नींद से सुबह जब रहमत मियां की. ख खुली तो उनका मन पूरे मूड में था। छुट्टी का दिन था और कल ही उन्हें पगार मिली थी। सो. सुक्खन थैला और पैसे लेकर जब बाजार पहुँचा. उसकी नज़र ऊपर आकाश में तैरती एक कटी पतंग पर पड़ी। पीछे-पीछे. पर नाकामयाब रहा। देखते ही देखते. चेहरे पर विजय-भाव लिये! काफी देर बाद. प्रस्तुतकर्ता. सुभाष नीरव. नई पोस्ट. मैं औ...यात...
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सृजन-यात्रा: August 2013
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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. शुक्रवार, 9 अगस्त 2013. सुभाष नीरव. सुभाष नीरव. साहित्य. समीक्षा की जानी-मानी पत्रिका. 8217; के लिए लिखते रहे हैं।. एक सप्ताह में उन्होंने दोनों पुस्तकें पढ़ डाली थीं। आज सुबह वह लिखने बैठ गए थे।. अभी भी उनके भीतर बहुत कुछ उमड़-घुमड़ रहा था जिसे वे रोक नहीं पाए -. 8216; कल की लेखिका. अपने आप को जाने समझती क्या है. केवल दो किताबें आई थीं. 8212; एक कहानी संग्रह और एक उपन्यास. दूसरे को कुछ समझती ही नहीं।. तीसरे दिन ही लौट आई। चलो. जी हाँ।. अखिल जी. केन्द्र...8217; के ...
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