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बैरंग: February 2012
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Tuesday, February 28, 2012. अँधेरे वक्त का हिसाब किताब. विद्रोही सुर का कवि पाश.( ९ सितम्बर १९५० - २३ मार्च १९८८). मुआफ़ करना मेरे गाँव के दोस्तों,. मेरी कविता तुम्हारी मुश्किलों का हल नहीं कर सकती". है तो बड़ा अजीब. अगर तेरा गौना नहीं होता. तो तुझे भ्रम रहना था. कि रंगों का मतलब फूल होता है. बुझी राख की कोई खुशबू नहीं होती. तू मुहब्बत को किसी मौसम का. नाम ही समझती रहती. तूने शायद सोचा होगा. तेरे क्रोशिये से काढ़े हुए लफ्ज़. किसी दिन बोल पड़ेंगे. असल में. किस तरह कोई भी गाँव. पंजाब के तम...हम वहा...
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बैरंग: January 2012
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Saturday, January 21, 2012. तंज़निगारी-1. डाकिए की ओर से:. इब्ने इंशा की '. की आखि़री किताब'. पहली किस्त. हमारा मुल्क. ईरान में कौन रहता है? ईरान में ईरानी कौम रहती है।. इंगलिस्तान में कौन रहता है? इंगलिस्तान में अंग्रेज़ी कौम रहती है।. फ्रांस में कौन रहता है? फ्रांस में फ्रांसीसी कौम रहती है।. ये कौन सा मुल्क है? ये पाकिस्तान है।. इसमें पाकिस्तानी कौम रहती होगी? नहीं, इसमें पाकिस्तानी. पाकिस्तान. हद्दे अरबा (चौहद्दी). पाकिस्तान के मशरिक में सीटो...पाकिस्तान. और मगरिबी पाकिस&...भारत का म...खैर...
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बैरंग: June 2013
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Monday, June 17, 2013. ऑपरेशन थ्री स्टार. एक बार गधी ने पूछा कि ओ गधे इश्क करता है. मैं जानू पक्का तू मुझको घूरे मुझपे मरता है. तो गधे की तो भई खुली लाॅटरी. बोला मेरी जानम, तू एक हुक्म दे, कदमों में तेरे मर जाऊं हरदम. तो गधी ये बोली, मैं तेरा बायोडाटा लूंगी. मैं thought करूंगी उस पर तभी लाइन क्लियर मैं दूंगी. तो गधा ये बोला बायोडाटा तो मेरा है ऐसा कि. फट जाए बड़े बड़ों की एटम बम के जैसा. मैं पाया जाता चरता हूं. हां मैदानों के अंदर. IAS भी मैं हूं आज का. IPS भी मैं हूं. का मंचन किया...जो खì...
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बैरंग: November 2012
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Thursday, November 1, 2012. तुग़लक़ : एक रिपोर्ट. यशपाल शर्मा के अभिनय इतनी मांजी हुई है कि वे बोलते बोलते अगर अपना संवाद भूल भी जाएं तो उसे अपनी आवाज़ के उतार चढ़ाव बखूबी संभाल सकते हैं।. नाटक में ताली बजाने का मजबूर करते कई दृश्य थे। हंसने के सीन भी थे। कुछ संवाद जो याद रह गए उनमें यह था -. दूसराः. साजिश का पर्दाफाश होने पर तुग़लक़ अपनी भर्राई आवाज़ में खीझ कर कहता है-. राजसिंहासन डावांडोल।. तस्वीरें ब्रोशर से ली गयी हैं. सस्नेह. सागर. इस संदेश के लिए लिंक. स्टाम्प : Naatak. 2 ज़वाबी. गुलज़...अपने...
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बैरंग: July 2012
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Wednesday, July 18, 2012. एक बार और समझा दो राजेश! मृत्यु बेसिक इंस्टिंक्ट है. हम खामखाँ पसीने पसीने हो रहे हैं. सीन - 1. बाहर/गैराज के सामने/दिन. सीन - 2. अंदर/ अमिताभ का कमरा/दिन. सीन - 3. अंदर/ क्लिनीक/ दिन. काका: मैं तो तुझे मेरी उमर लग जाए का आर्शीवाद भी नहीं दे सकता बहन। - - - - (आनंद). सीन - 4. फिल्म - याद नहीं). इसी तरह सीन 5, 6, 7, 8, 9 और 10।. होता है। एक तस्वीर उभरती है।. नीचे ग्राफिक उभरता है - राजेश खन्ना. सस्नेह. सागर. इस संदेश के लिए लिंक. स्टाम्प : Aawaaz. 5 ज़वाबी. गुलज़ì...अपने...
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बैरंग: December 2012
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Sunday, December 23, 2012. शिव कुमार बटालवी की एक कविता. वह भी शहर से आ रही थी,. मैं भी शहर से आ रहा था. इक्का चलता जा रहा था. दूर पश्चिम की ख़ुश्क शाख पर. सूरज का फूल मुरझा रहा था. मेरे और उसके बीच में फासले थे. फिर भी मुझे सेक उसका आ रहा था. इक्के वाला धीरे-धीरे गा रहा था. इक्का चलता आ रहा था. दोनों किनारे सांवली सी सडक के. उसके होंटों की तरह थे कांपते. हवा का चिमटा सा जैसे बज रहा. पेड़ों के पत्ते भी थे खनकते. दूर एक एक शाम का फीका सा तारा. उसके और मेरे बीच फासला. वह और उसके साथ उसका ह&...मेरे...
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बैरंग: September 2012
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Saturday, September 29, 2012. नीली झील और बुरी बात (करतार सिंह दुग्गल ). इए घर में आये बहुत दिन नहीं हुए थे कि हमने महसूस किया की बच्चू अक्सर चिड़चिड़ाया रहता था,. बच्चू के लिए प्रयोग की तरकीब हम पर खुद बहुत सही रही पति -पत्नी में जिसे क्रोध आता नीली झील का जादू अवश्य काम आता।. सस्नेह. डिम्पल मल्होत्रा. इस संदेश के लिए लिंक. 4 ज़वाबी. Subscribe to: Posts (Atom). यूँ भी हुआ है,. कुछ माज़ी के परिंदे,. पेशानी में पड़ी लकीरों को,. शाख समझ बैठे. जब भी कैफियत बदली,. फ़िर संभाल ली. अपनी परवाज़. अपने लì...
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बैरंग: October 2012
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Wednesday, October 31, 2012. डाकिये की ओर से:. आप भी सुनिए यह स्वस्थ, गुदगुदाने वाला प्रहसन।. सस्नेह. सागर. इस संदेश के लिए लिंक. स्टाम्प : Audio Podcast. 1 ज़वाबी. Subscribe to: Posts (Atom). यूँ भी हुआ है,. कुछ माज़ी के परिंदे,. पेशानी में पड़ी लकीरों को,. शाख समझ बैठे. जब भी कैफियत बदली,. फ़िर संभाल ली. अपनी परवाज़. कुछ भूले से परिंदे,. कुछ नए से ख्याल,. फ़िर यूँ ही लौट गए. सप्ताह का मनीऑर्डर: हर सिम्त परीशाँ . पत्र-मित्र. प्राची के पार. लेखनी जब फुर्सत पाती है. ड्रीम्ज़. दफ़्अतन. अपने लिए...कत्...