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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 9 मार्च 2009. आओ हमदम खेलें होली! ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि. हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते।. अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे।. होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता।. पता ही नहीं चलता था।. पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता।. खूब पिटते और हँसते।. फ़िर आता रंग यानी धुल...मोहल्ले. इस मेले क...लेक...

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 9 मार्च 2009. आओ हमदम खेलें होली! ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि. हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते।. अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे।. होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता।. पता ही नहीं चलता था।. पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता।. खूब पिटते और हँसते।. फ़िर आता रंग यानी धुल&#23...मोहल्ले. इस मेले क&#2...लेक...
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1 होली
2 जब कि
3 जबकि
4 चाँद
5 हमें
6 नहीं
7 कभी कभी
8 अपनी कही
9 हमज़बान
10 हमक़दम
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होली,जब कि,जबकि,चाँद,हमें,नहीं,कभी कभी,अपनी कही,हमज़बान,हमक़दम,दीदार,mohalla live,संग्रह,october,design by shahroz
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khamoshbol ख़ामोश बोल | khamoshbol.blogspot.com Reviews

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 9 मार्च 2009. आओ हमदम खेलें होली! ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि. हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते।. अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे।. होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता।. पता ही नहीं चलता था।. पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता।. खूब पिटते और हँसते।. फ़िर आता रंग यानी धुल&#23...मोहल्ले. इस मेले क&#2...लेक...

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khamoshbol ख़ामोश बोल: July 2008

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 28 जुलाई 2008. बम-धमाकों के बाद. जब भी कहीं बम-धमाके होते हैं तो हर आम 'इंसान' की तरह मैं भी उनसे प्रभावित होता हूँ. और सोचता हूँ कि धरम के नाम पर ये अधर्म क्यों. इसलाम के नाम पर किये गए. हर बम-धमाके के बाद. मैं सहम जाता हूँ. हिन्दू मित्रों या सहकर्मियों से. नज़र नहीं मिला पाता. अपने नाम को नहीं पहनना चाहता कुछ दिन. डरता हूँ. कि उस पर. धमाकों में मरने वाले. उन निर्दोष बुजुर्गों, जवानों. औरतों और बच्चों के. खून के छीटें न लगे हों. और इससे पहले कि. भाई और बेटे. दादी...रिश...

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khamoshbol ख़ामोश बोल: आवारा मन

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. बुधवार, 28 जनवरी 2009. आवारा मन. अपनी आँखें बंद कर चला. अंधेरे चार सूँ निकल पड़े हैं. नर्म बिस्तर की पलकों में. हसीं ख़्वाबों से लिपटे पड़े हैं. शौरोगुल. खामोशियों की आगोश में. बेखबर सोये पड़े हैं. आसमानी नदी में बहने लगा है. सितारे खिलखिला पड़े हैं. आवारा परिंदा-सा भटकता है मन. आवारा खलाओ में, आवारा उम्मीदें लिए. प्रस्तुतकर्ता. ज़ाकिर हुसैन. लेबल: कवि मन ०१.०४.१९९८. 8 टिप्‍पणियां:. अनिल कान्त :. ने कहा…. अनिल कान्त. 29 जनवरी 2009 को 5:00 am. श्रद्धा जैन. ने कहा…. Man waqayi aawara hai.

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khamoshbol ख़ामोश बोल: शुभकामना

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 27 अक्तूबर 2008. शुभकामना. सभी मित्रों और देशवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं! प्रस्तुतकर्ता. ज़ाकिर हुसैन. 6 टिप्‍पणियां:. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi. ने कहा…. आप को भी. दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ. दीवाली आप और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए।. 27 अक्तूबर 2008 को 4:53 am. ने कहा…. 27 अक्तूबर 2008 को 5:40 am. संगीता पुरी. ने कहा…. 27 अक्तूबर 2008 को 5:45 am. ने कहा…. दीपावली की मंगलमय शुभकामना. 27 अक्तूबर 2008 को 10:58 am. ने कहा…. सैयद शहर&#...

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khamoshbol ख़ामोश बोल: आओ हमदम खेलें होली!

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 9 मार्च 2009. आओ हमदम खेलें होली! ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि. हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते।. अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे।. होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता।. पता ही नहीं चलता था।. पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता।. खूब पिटते और हँसते।. फ़िर आता रंग यानी धुल&#23...मोहल्ले. इस मेले क&#2...लेक...

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khamoshbol ख़ामोश बोल: June 2008

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. शुक्रवार, 27 जून 2008. चार लाइन. हिंदू भी यहाँ है, मुसलमान यहाँ है. सिख, बोध, जैन और किरिस्तान यहाँ है. लेकिन जिसे खोजता हूँ, वो नहीं है. इंसान कहाँ है? यहाँ इंसान कहाँ है? प्रस्तुतकर्ता. ज़ाकिर हुसैन. 3 टिप्‍पणियां:. सपनों पर प्रतिबन्ध नहीं. अच्छा -बुरा. छोटा -बड़ा. कलर या ब्लैक एंड व्हाइट. जैसी मर्ज़ी देखो. आँखें तुम्हारी हैं. और नींद भी. सपने भी तो तुम्हारे ही हैं. साकार हों. ये जिद क्यों. जिंदगी को नींद में नहीं. जगी हालत में देखो. सपनों से उलट. और जिंदगी. नई पोस्ट. बुढ़&#236...

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मेरी लेखनी: March 2009

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मेरी लेखनी. शनिवार, 14 मार्च 2009. अपनी पहचान. सुबह सुबह फ़ोन की घंटी बजी। ( हमारी सुबह ११ बजे के बाद ही होती है।. ना कोई रंग, न उमंग. कितना बोर जाती है ज़िन्दगी? खैर, सरिता ने जो हमें बताया उसे सुनकर हमारे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी भाई। हालांकि हमें किसी मसाले की तलाश थी, पर यह? हमारी एक और ख़ास सहेली रेनू अपने पति से तलाक लेने जा रही थी। बस फिर क्या था? आज के बाद सरिता की बात का विश्वास ही नही करेंगे! सुना है चूहों को करंट पसंद है! क्यों? खाली खाली मतलब? सब कुछ बेमानी सा". ऐसे ही? सरिता न...रेन...

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मेरी लेखनी: April 2011

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मेरी लेखनी. गुरुवार, 28 अप्रैल 2011. सब ठीक है. हेल्लो". हाँ हेल्लो माँ". हाँ बेटा कैसी हो? मैं अच्छी हूँ. आप लोग कैसे हो? हम सब ठीक हैं. सब ठीक चल रहा है. पापा कैसे हैं? ठीक हैं. बस कल गिर गए थे. थोडा घुटने में दर्द है. वैसे सब ठीक है. अरे मुन्नू को लेकर पार्क गए थे. तो वहीँ पैर फिसल गया.". तो अकेले लेकर गए थे? सुजाता नहीं थी? सुजाता काम छोड़ गयी. तुम्हारी भाभी से खटपट हो गयी. ". तो भाभी लेकर जाती. पापा क्यों ले गए? भैया भाई कैसे हैं? कैसा चल रहा है? सब ठीक हैं. क्यों? क्या हुआ? बस सब ठीक है. उसकी...

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मेरी लेखनी: प्रमित

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मेरी लेखनी. रविवार, 6 फ़रवरी 2011. बहुत दिनों. या कहूँ कि बहुत महीनों बाद आज कुछ लिखने बैठी हूँ. डर है कहीं आप लोग मुझे भूल तो नहीं गए? खैर, इन महीनों में काफी कुछ बदल गया है. मेरा आखरी लेख अब २ पतझड़, २ सर्दियाँ, १ बसंत और १ गर्मी जितना पुराना हो चुका है. मेरी नन्ही गुड़िया अब दीदी बन कर रौब जमाती है. भैया को कब दुद्दू पीना हमें वो बताती है. उसको अब गुड्डे गुड़िया अपने नहीं भाते हैं. बुआ-फूफा, मौसी-मौसा कर रहे हैं इंतज़ार. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. बात दिल की. ने कहा…. AANGAN KI KHUSHIYAAN DOBALA HUIN!

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मेरी लेखनी: नन्ही परी

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मेरी लेखनी. सोमवार, 6 अप्रैल 2009. नन्ही परी. उसके तीसरे जन्मदिन (११ फरवरी) के अवसर पर यह कविता बनाई थी पर ब्लॉग पर अब डाल रही हूँ. कल की जैसे बात हो, हमारे आँगन को उसने किया गुलज़ार. हमारी ज़िन्दगी में रस घोला, पूरे घर में आ गयी जैसे बहार. दादा-दादी, नाना-नानी को मिला नया खिलौना. पापा और माँ की बाहें बनी उसका बिछौना. पल पल में रोना ही थी सिर्फ उसकी भाषा. हम सब की मनौती, हम सबकी आशा. वो दिन भर की थकन के बाद रात भर का जागना. बस उसकी एक झलक से उस थकन का भागना. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. बहुत सु...Achchi ka...

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मेरी लेखनी: राम नवमी और राम राज का सपना

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मेरी लेखनी. सोमवार, 11 अप्रैल 2011. राम नवमी और राम राज का सपना. वो खून कहो किस मतलब का जिसमे उबल का नाम नहीं. वो खून कहो किस मतलब का आ सके जो देश के काम नहीं. पर एक आदमी ने कोशिश की और नतीजा! सारा भारत एक तरफ और कुछ नेता एक तरफ. और कौन नहीं चाहता कि हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो? प्रस्तुतकर्ता. लेबल: बात दिल की. 4 टिप्‍पणियां:. ने कहा…. Behad pasand aayi post! Smart Indian - स्मार्ट इंडियन. ने कहा…. भ्रष्टाचार मुक्त भारत! डॉ॰ मोनिका शर्मा. ने कहा…. Sunder Aalekh.Ramnavami ki shubhkamanyen. आईआईट&#236...

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मेरी लेखनी: January 2009

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मेरी लेखनी. शनिवार, 24 जनवरी 2009. कभी कभी कितनी कश्मकश हो जाती है जीवन में? मन कुछ चाहता है पर आप किसी को बोल नही सकते। कितना औपचारिक बन जाता है सब कुछ? पर आज तक मैं नहीं समझ पायी कि ऐसा क्यों होता है? किसी की खुशियों को क्यों नज़र लग जाती है? ऐसा आराम? अस्पताल में? प्रस्तुतकर्ता. 7 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: कहानी. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुछ मेरे बारे में. Cedar Rapids, Iowa, United States. मेरे पसंदीदा. 16 घंटे पहले. 2 सप्ताह पहले.

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मेरी लेखनी: August 2008

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मेरी लेखनी. शुक्रवार, 22 अगस्त 2008. बस ऐसे ही. बारिश में भीगे हुए मन को बहलाती हूँ. सावन जो बीत गया, उसकी याद दिलाती हूँ. क्या वो तुम ही थे? जो मेरे साथ थे. यह सवाल कई कई बार ख़ुद से दोहराती हूँ।. फिर क्यूँ कूकी कोयल, गौरैया क्यूँ चहकी? नहीं हैं यहाँ फूल तो क्यूँ फिर बगिया महकी? पगली यह सावन है पतझड़ नहीं,. यही बात हर बार ख़ुद को समझाती हूँ. चूड़ीवाला हांक लगाता है, बार बार बुलाता है. अब इस घर में उसका काम नही. क्यूँ नहीं उसको बतलाती हूँ? अगले सूरज के साथ तुम आओ. लेबल: कविता. पर नहीं बस हम&#2...खैर...

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मेरी लेखनी: July 2008

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मेरी लेखनी. बुधवार, 30 जुलाई 2008. बिना किसी शीर्षक के. आज फिर दिल पर चोट हुई है. आज फिर एक घर जला है. उस ने नहीं देखा किसी का धर्म. कहर तो बस अपने रास्ते चला है. सवेरे की रौशनी अलसाई है. दिन भी यहाँ आज थोड़ा मंद है. कल शाम यहाँ लाशें गिरी थीं. कल धमाकों में सूरज ढला है. मन्दिर की घंटियाँ बंद पड़ी हैं. अज़ान में भी आज आवाज़ नहीं है. मूक हो गए हैं मोहल्ले वाले. आज चुप रहना ही भला है. रहमान चाचा की बेगुनाह आँखे,. माफ़ी मांगती हैं उस राम से. जो बचपन से लेकर जवानी तक. इन बुजुर्ग. तुम, मैं और हम. जामन क&#237...

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मेरी लेखनी. मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011. मान भंग. बहुत हो गया. रोज़ की ही बात है। अब नहीं सहा जाता।". पूर्णिमा ने निश्चय कर लिया।. आर या पार। यह भी कोई जीवन है? बस बस ज्यादा मत बोलो। अगर तुम्हारे माँ-बाप होते तो? तो तुम्हें कौन सी रोक है? सारे काम तो अपने मन के ही करती हो। कभी कभी उनकी बात मान भी लोगी तो क्या बिगड़ जाएगा? और अगर तुम्हारी बहन एक हफ्ते बाद आ जायेगी तो उसका क्या बिगड़ जायेगा? अगले ही दिन उसने घोषणा की कि वह अपने मायके जा रह&...कुछ अन्दर से दरक गया पूर्णि...ऐसे कब तक चलेगा? मैंन&#2375...आप ल&#237...

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هیس!!!!!اینجاآرامشی برپاست پابرهنه باش

اینجاآرامشی برپاست پابرهنه باش. آتشی که زیرخاکستر هست خطرناک تراز آتشی هست که روشن است پس مواظب باش پاتو هرجا نزاری. پنجشنبه دهم مرداد 1392 - 11:8. خوبه حالم ساحل ازخودم ساختم به امید اینکه می دونم دوست داری بری. بالا وصعودکنی واسه همین دل به خورشیددادیوابرشدی اما نمی دونی. وقتی ابرتواسمون جمع می شه همه بغضشون می گیره خواهان بارش. می شن اونجاست که بنده بی معرفت خداواسه امید اینکه بارشت تو. ساحلش باشه دست به دامن دعامی شه حتی شده واسه. اخرین دل نوشته خاکسترداغ نظر سنجی غیر فعاله چون چیزی نبود که نیاز.

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رها

پروفایل من : مرتضی. چشم من پای تو. نه شیشه ، نه قاب. باشگاه مدیران و متخصصان. ساعت ٢:٢٠ ‎ق.ظ روز ۱۳٩٢/٦/۱٩ : توسط : مرتضی. لحظه های بی شرار. لحظه های بی قرار. لحظه های نوجوانی و جوانی ام. در دست گرم بی تفاوتی. لحظه های من، بی پناه بود. مثل شام غمزده، روزهای من پر ز آه بود. تا که لحظه ی دلم در نگاه چون شراب یک فرشته ی زمینی غریب. یا که نه تنگ جامه اش. با پیاله ی شراب چشم های او. لحظه های مست این دل خراب. نه گویا زبانی که باز گویم. چه سان حباب لحظه ها در انتهای بودنشان. فاصله ها را دورتر می کنند. ساعت &#17...

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خموشانه | حق سکوتی برای نگفتن و ندیدن

حق سکوتی برای نگفتن و ندیدن. جنبش را تعطیل کنیم یا نه؟ حمله به خاتمی یا برنامه ریزی برای خرداد سبز؟ مه 17, 2011 در 3:50 ب.ظ. · Filed under یادداشت. در حالی که تنها سه روز دیگر تا آغاز خردادماه مانده تنها کافی است گذری در لینک های بالاترین بیاندازیم … هر چه لینک ببینی فحش به خاتمی است چون ظاهرا دو روزی است سوراخ دعا پیدا شده و اگر به خاتمی فحش بدهی لینکت داغ میشود و چه بهتر از این؟ شاهد عینی: اگر پنج دقیقه دیرتر آمده بودم دل و روده ام کف ایران خودرو بود. بعد از ان شگرد اقایون اینستکه از امروز کارخانه را ت...

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من لال شده ام

من لال شده ام. خاموش باش. که فریادت آرزوست. به نظرتون زمین گرده یا زمان. حالا هی دور بزن. یه روزی جلو چشمت. تمام این صحنه ها تکرار میشه. هی دور بزن حالا. نوشته شده در ۱۳٩٤/٢/٧ساعت ۱۱:٤٦ ‎ق.ظ توسط راضیه نظرات . با قلم می‌گویم:. ای همزاد، ای همراه،. هر دومان حیران بازی‌های دوران‌های زشت. اشک‌هایم را کجا خواهی نوشت؟ نوشته شده در ۱۳٩٤/۱/۱٤ساعت ۱٠:۳٦ ‎ب.ظ توسط راضیه نظرات . زیباترین آبشاری که دیدم. امروز باهاش کلی خندیدم. خانمی بود برای خودش. چادری داشت و مرتب. موهایش اما نامرتب، آشفته، زیر چادرش پنهان بود.

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Khamoshbol ख़ामोश बोल. सोमवार, 9 मार्च 2009. आओ हमदम खेलें होली! ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि. हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते।. अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे।. होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता।. पता ही नहीं चलता था।. पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता।. खूब पिटते और हँसते।. फ़िर आता रंग यानी धुल&#23...मोहल्ले. इस मेले क&#2...लेक...

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khamosh dhadkanen | silent heart beats

Allah is full of mercy. No doubt about it. But still with every dhikr he has mentioned what reward we may get. Even it would have been enough for a beleiver to just know the dhikr he is bound to do. But my Allah showed him the fruits as well. Everytime I recite any dua, dhikr or do any ibadah these rewards crosses my mind. I keep on telling same to my daughter- the beautiful jannah, the fairies, the fruits, the flying horse etc etc. I end up this post with this dua that. August 11, 2015. August 10, 2015.

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خاموشی

نوشته شده در دوشنبه پنجم اردیبهشت 1390ساعت 2:8 توسط مهسا. دلم برات تنگ شده مامان جونم کم اوردم همش با بابا دعوام میشه چیکار کنم اصلا درکم نمی کنه همش . مامان جونم نمیشه منو ببری پیش خودت دیگه خسته شدم از همه کاش پیشم بودی دلم می خواست باهات حرف بزنم دردو دل کنم کسی رو ندارم که باهاش حرف بزنم با بابا حرف میزنی اعصبانی میشه با محمد که نمی شه سحر بنده خدا که حاملست گناه داره ناراحتش کنم . من تنهام تنهای تنها. مامان دوست دارم تو بهترینی. نوشته شده در چهارشنبه پنجم آبان 1389ساعت 3:51 توسط مهسا. ليلي گفت: موها...

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(¯`'•.4loveme¸.•'´¯)

4loveme . ' ). در فلاکت و بدبختی، نباید امید را فراموش کرد. آب زلال باران از ابرهای سیاه سرازیر میشود. وقتی میشی نیاز من اگه نباشی پیش من. اشکای چشمامو ببین که میریزه به پای تو. بازم که بی قرارمو دلواپس نگاه تو. تموم هستی منی بمون همیشه پیش من. اگه شدم عاشق تو نذار که بی تاب بمونم. لالایی شبام تویی نذار که بی خواب بمونم. دارم برات شعر میخونم شاید به یآدم بمونی. فقط یه چیز ازت میخوام همیشه عاشق بمونی. دوست دارم خیلی کمه ولی جز این چیزی نبود. واژه ها رو ولش کنیم عشقمو از چشام بخون. تقديم به اشكي كه غمش منم،.

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खामोश फ़लक

खामोश फ़लक. गुमनामियों के धूंधलके. कोहरे में डूबा अदृश्य आदिवासी संसार. आदिम गूंज ३१. Posted in आदिम गूंज. आदिवासी. खामोश फ़लक. हमारे अविरल बहते आंसू. प्रस्तुतकर्ता खामोश फ़लक. On सोमवार, 9 जून 2014. हमारे अविरल बहते आंसू. हमारे अविरल बहते आंसू. बनकर टिमटिमाएंगे. घने जंगलों में. जुगनुओं की कतार बनकर. हमारे पसीने की एक एक बूंद. जगमगाएगी नभ में सदा. आकाशगंगा बनकर. हमारे पुरखों के गीत. गूजेंगे घने जंगलों के. हर कोने में. कोई जादुई तान बनकर. कोई अबूझ स्वप्नलहरी बनकर. रोशनी का जंगल बनकर. बेसमझ/ बेखबर. बैठ...