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चर्चामंच: बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967
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Wednesday, May 06, 2015. बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं चर्चा मंच 1967. बावरे लिखने से पहले. कलम पत्थर पर. घिसने चले जाते हैं. सुशील कुमार जोशी. उलूक टाइम्स. राजपथ तक पहुंचाते हाथ. KAVYASUDHA ( काव्य सुधा ). वही होता है जो निर्णायक चाहता है! कालीपद "प्रसाद". मेरे विचार मेरी अनुभूति. मील का पत्थर. अरुण चन्द्र रॉय. भोर का सपना". मेरा मन". यूं राजनीति में सभी भिखारी तो होते हैं. पर ४२ साल का बच्चा होने का अपना ही सुख है. ताक-झांक :. लो क सं घ र्ष! आवारा बादल. येल्लो! ओ बी ओ. तुम&#...
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शख्स - मेरी कलम से: July 2011
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शख्स - मेरी कलम से. शनिवार, 30 जुलाई 2011. एक गहरा वजूद - असीमा भट्ट. ब्लॉग की दुनिया बहुत बड़ी है . हर बार घूमते हुए यह गीत होठों पर काँपता है , ' इतना बड़ा है ये दुनिया का मेला , कोई कहीं पे ज़रूर है तेरा. शब्दों का रिश्ता बनाने के लिए मानस के रश्मि ज्वलित जल से. कुछ ऐसा ही एक आधार हैं असीमा भट्ट. सबसे पहले धन्यवाद मुझ नाचीज को इतनी इज्ज़त देने के लिए .तो सुनिए . जिंदगी मेरे लिए एक इम्तहान है . मैं रोज़ एक प्रशî...बहुत कुछ खोया है . बहुत कुछ पाय&#...आखिर में इतना ही कह...नोट - अस्वस...चलि...
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मन पाए विश्राम जहाँ: जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! मंगलवार, जुलाई 10. जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं. यह कविता उन सभी युवाओं को समर्पित है जिनका जन्मदिन आज है और जो घर से दूर हैं. जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं. सहज आत्मविश्वास झलकता. ज़ज्बा कुछ कर दिखलाने का,. भीतर-बाहर एक हुआ मन. नहीं भाव है टकराने का! सुखद प्रेम की अभिव्यक्ति है. खिला-खिला ज्यों कोई कमल,. एक ऊर्जा सघन है भीतर. व्यक्त हुआ हर भाव अमल! लक्ष्य दिख रहा चंद कदम पर. पथ भी उज्ज्वल है जिसका,. निष्ठा. शुभकामना. आज हमार&#...
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मन पाए विश्राम जहाँ: नन्हा सा यह दिल बेचारा
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! गुरुवार, अप्रैल 23. नन्हा सा यह दिल बेचारा. नन्हा सा यह दिल बेचारा. झेलता आया है न जाने कितने तूफान. कभी उबला क्रोध की अग्नि पर. कभी सहा ठंडापन उपेक्षा का. कैसे-कैसे भावों का हुआ शिकार. सहे नादान इन्सान के अत्याचार. क्या नहीं उठाया था कांपते हाथों में खंजर. भूल गये, जब फेरी थीं आँखें. देख पीड़ितों का मंजर. लालसा के ज्वर से ग्रस्त डोलता रहा. कभी उलाहनों से भरा, कभी डरता रहा. सुख को चाहा पर थमकर न बैठा. इसे ईमेल करें. बहुत सु&#...टिप...
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मन पाए विश्राम जहाँ: छा गयी जब बदलियाँ
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! मंगलवार, मई 5. छा गयी जब बदलियाँ. छा गयी जब बदलियाँ. हवा की सरगोशियाँ. पर झुलाती तितलियाँ,. डोलते से शाख-पत्ते. झूमती सी कहकशां! एक चादर सी बिछी हो. या धरा पर चुनरियाँ ,. पुष्प जिस पर सज रहे हैं. मस्त यूँ नाचे फिजां! आ गये मौसम सुहाने. छा गयी जब बदलियाँ,. धार अम्बर से गिरी ज्यों. रहमतें बरसें जवां! गा रहे पंछी मगन हो. छा रही मदहोशियाँ,. हैं कहीं नजदीक ही वह. कह रही खामोशियाँ! मंगलवार, मई 05, 2015. इसे ईमेल करें. बदलियाँ. यह कवित&#...
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मन पाए विश्राम जहाँ: एक अनंत गगन है भीतर
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! बुधवार, अप्रैल 8. एक अनंत गगन है भीतर. एक अनंत गगन है भीतर. नाच उठे जो कैद है भीतर. खेल चल रहा कोई सुंदर,. एक ऊर्जा गाती प्रतिपल. एक ऊर्जा सुनती हर स्वर! जीवन एक सुहृद मित्र सा. प्रतिक्षण ऊंचा ही ले जाता,. एक अनंत गगन है भीतर. फिर क्यों घर का आंगन भाता! तोड़ के सारे झूठे बंधन. अभय प्राप्त यदि कर लेगा मन,. नई नई राहें खोजेगा. सहज उड़ान भरेगा चेतन! बुधवार, अप्रैल 08, 2015. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! उत्तर दें. उत्तर दें. यह अनंत स...
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मन पाए विश्राम जहाँ: उन सब बच्चों को समर्पित, जिनका आज जन्म दिन है और जो घर से दूर हैं !
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! रविवार, जुलाई 10. उन सब बच्चों को समर्पित, जिनका आज जन्म दिन है और जो घर से दूर हैं! प्रिय पुत्र के जन्मदिवस पर. तुम आये जीवन में जिस पल. जगमग मन में हुआ उजाला,. अपने ही तन की माटी से. गढ़ डाला जब रूप निराला! उस नन्हें तन के भीतर से. तुम झांक रहे जैसे गोपाला,. सुंदर मुखड़े से नित अपने. सबको मोहित कर डाला! बालक हुए किशोर बने तुम. बड़े प्रेम से हमने पाला,. युवा हुए हो, दूर गए अब. घर को सूना कर डाला! इसे ईमेल करें. Labels: किशोर. जन्...
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मन पाए विश्राम जहाँ: उसी घड़ी में कुछ घट जाता
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! शनिवार, फ़रवरी 9. उसी घड़ी में कुछ घट जाता. उसी घड़ी में कुछ घट जाता. वक्त का दरिया बहता जाता. यूँ लगता कुछ कहता जाता! कल का सूरज कहाँ खो गया. आयेगा जो किधर से आये,. था अभी हुआ मृत. किसी अतल में गुमता जाता! दूर सितारों से गर देखें. धरा गेंद सी डोल रही है,. एक आवरण में लिपटी सी. भेद किसी के खोल रही है! सब कुछ पल में थिर हो जैसे. समय की रेखायें मिट जाये,. एक सनातन सृष्टि मिलती. शनिवार, फ़रवरी 09, 2013. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. यह अनं...
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मन पाए विश्राम जहाँ: विपासना का अनुभव -३
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मन पाए विश्राम जहाँ. नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग! शुक्रवार, मार्च 6. विपासना का अनुभव -३. विपासना का अनुभव. शुक्रवार, मार्च 06, 2015. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. Labels: बुद्ध. मन पाए विश्राम जहाँ. विपासना. 1 टिप्पणी:. 16 अप्रैल 2015 को 12:13 pm. विपासना ध्यान केसे करे . . Plz. मार्ग दर्शन करे . . ! उत्तर दें. टिप्पणी जोड़ें. अधिक लोड करें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. इंद्रधनुष सतरं. कल बड़े भ&#...फिर...